kya hai kitabe - क्या हैं किताबें - hindi poetry - rahulrahi.com
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बेज़ुबाँ किताबों का,

दायरा कुछ और है,
रास्ता कुछ और है,
फ़लसफ़ा कुछ और है।

बोलती हैं कुछ नहीं,
मौन में विलीन सी,
शब्द हैं भरे पड़े,
फिर भी शब्दहीन सी,
साथ लेके चलती हैं,
ज्ञान का प्रवाह सतत,
योगीयों की वाणी सा,
लाभ है सदा प्रकट,
हैं जहाँ वहाँ हैं ख़ुश,
कोई भी ना दौड़ है,
फिर भी लेश मात्र को भी,
गर्व पर ना ग़ौर है,

इन, बेज़ुबाँ किताबों का,
दायरा कुछ और है,
रास्ता कुछ और है,
फ़लसफ़ा कुछ और है।

है समान भाव सारी,
उम्र – जाति के लिए,
चाहे आप डूबिए,
ज्ञान में या खेलिए,
वो लिए है प्रेम गीत,
काम, ध्यान, ज़िंदगी,
भूत और भविष्य भी,
वर्तमान बंद भी,
खुलती सारी ओर, और,
ना कोई ओर – छोर है,
फिर भी लेश मात्र को भी,
गर्व पर ना ग़ौर है,

बेज़ुबाँ किताबों का,
दायरा कुछ और है,
रास्ता कुछ और है,
फ़लसफ़ा कुछ और है।

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